आंख मारी उगदे त सितारम देखु
आंख मारी उगदे त सितारम देखु,
धन्या मारु जीवन कृपा अइ लेखु,
राम कृष्ण राम कृष्ण रस उचारे,
हरि न आनद मारे अन्तारे।
रामायण गीता मारी अन्तर अँखो,
हरि ए ई दीदी च्ये मन उद्वनि पंखो,
राम ना विचोरो मारी अधलक नालु,
गावु म्हारे निसदिन रा नू ज गानु।
प्रभु न भक्तो मेरी गाथा पुन संम्बन्दी,
चुत ग्रन्थि तुति मारी माया नि बांधी,
सुध भक्ति वधे मारी पूर्णिमा जीवी,
प्रभु सन्तो आशिह सदा देवो अवि।
जेने श्री राम चरण रस चखियो,
अने संसार न मिथ्या करि नख्यो,
अलस न जने चे सुखदेव जोगी,
कैक जने चे पेलो नरसइयो भोगी।